International code of Botanical Nomenclature
पादप नामकरण की अंतराष्ट्रीय संस्था – ICBN है इसका गठन 1975 में बारहवीं कोंग्रेस में किया गया।
इसके द्वारा प्रतिपादित नियम 1978 में प्रकाशित किये गए।
इसके द्वारा प्रतिपादित नियमो को तीन भागों में बांटा गया है ।
- Principles
- Rules
- Recommendation
A.. Principal
इसके अनुसार पादप का नामकरण 6 सिद्धान्तों पर आधारित होता है –
- पादप के नामकरण की प्रक्रिया जन्तु नामकरण से भिन्न होगी ।
- किसी taxon का नाम Nomenclature type से निर्धारित किया जाता है।
- वर्गको का नामकरण उनके publication की प्राथमिकता पर आधारित होता है।
- कुछ अपवादों को छोड़कर प्रत्येक वर्गक का नियमो के आधार पर दिया जाने वाला नाम ही correct नाम होता है ।
- वर्गको का वैज्ञानिक नाम लेटिन भाषा में होता है।
- कुछ अपवाद को छोड़कर नामकरण के नियम पूर्वव्यापी होते हैं
B. Rule नियम
यह नियम नामकरण से संबंधित सभी तथ्यों की पूर्ण व्याख्या करते हैं कोई भी नाम किसी भी वैज्ञानिक द्वारा दिया गया हो जो इस नियम के दायरे में नहीं आता वह मान्य नहीं होता है।
कुछ महत्वपूर्ण नियम निम्न है
- Rule of rank of taxa
- Rules of typification
- The principle of priority
- Name of the families
- Name of the genera
- Name of the species
- Name of plants in cultivation
- Rule of validity
- Rule of Effectivity
- Latin Diagnosis
- Citation of Author’s Name
- Nomenica Generica Conservanda
- Other Rule
- Rule of rejection
1. Rule of rank of taxa
- ICBN के अनुसार किसी भी कोटी का वर्गीकरण समूह वर्गक (taxon) कहलाता है।
- जैसे Species, Genus, Family, Order, Class, Division etc
- इसे दो श्रेणियों में बांटा गया है –
Major Taxa
- Kingdom
- Division
- Sub division
- Class
- Sub class
- Order
- Sub order
- Family
- Sub family
- Tribe
- Sub tribe
Minor Taxa
- Genus
- Sub genus
- Species (sp.)
- Subspecies(ssp.)
- Variety (var.)
- Sub variety (sub var.)
- Forms (f)
- Clone (cl.)
विभिन्न taxonomic categories के कुछ मुख्य suffix निम्न प्रकार होते है
जैसे –
Taxon Suffix
Class eae
Order ales
Sub order ineae
Family aceae
Sub family oideae
Tribe eae
Sub tribe inae
2. Rules of typification
- किसी भी श्रेणी के वर्गको के कुल वंश अथवा जाति का नाम Nomenclature Type के आधार पर रखा जाता है।
- किसी भी species अथवा Infraspecific taxon का एक अलग specimen होता है।
- Specimen को हरबेरियम सीट पर संरक्षित किया जाता है यदि किसी पौधे का type (प्ररूप ) preserved न किया जा सके तो इसका वर्णन अथवा उसका चित्र ही उसका प्रारूप होता है।
- किसी वंश का type species व family का type genus होता है।
Type (प्रारूप) के नामकरण के लिए निम्नलिखित शब्द प्रयुक्त किए जाते हैं –
- 1.Holotype (नाम प्रारूप)
किसी लेखक द्वारा नामकरण में सर्वप्रथम प्रयुक्त किया गया specimen , Holotype कहलाता है।
- 2.Isotype (समप्ररूप) –
यह Holotype का duplicate होता है । जैसे- यदि किसी एक जाति के शाकीय पोधे अलग-अलग herbarium sheets में लगाया जायें अथवा एक ही वृक्ष की शाखाओं से अलग-अलग hurbarium sheet तैयार की जाए तो इनमें से एक hololype तथा अन्य isolype कहलाते हैं ।
- Lectotype (चयन प्रारूप)- यदि किसी पोधे के वर्णन को प्रकाशित करते समय उसके Holotype को निर्धारित न किया जाये अथवा निर्धारित Holotype खो जाये, तो जिस प्रतिरूप को नामकरण प्ररूप की तरह प्रयोग किया जाता है, वह Lectotype कहलाता है ।
- Syntype (सह प्रारूप)- यदि लेखक द्वारा दो plant specimen का उल्लेख किया जाये तथा उनमें Holotype का उल्लेख न हो, तो इन दो प्रतिरूपों में से एक holotype तथा दूसरा syntype कहलाता है।
- Cotype (कोटाइप) – जिस पौधे से holotype का चयन किया जाता है, अगर उसी पौधे से एक ओर पादप specimen एकत्र किया जावे तो अतिरिक्त पादप प्रारूप cotype कहलाता है वास्तव में यह syntype के समान ही होता है।
- Ncolype (नवप्ररूप) – यदि किसी जाति का वह specimen जिस पर उसका विवरण आधारित हे, उपलब्ध न हो, तो उसके holotype के लिए जो specimen अथवा अन्य काई तत्व प्रयोग किया जाये,उसे neotype कहा जाता है ।
- Paratype (अपर प्रारूप) – ऐसा कोई plant specimen जो holotype के अलावा मौलिक विवरण प्रस्तुत करता हो तो उसे paratype कहा जाता हैं।
- Type (प्रारूप )- जब किसी specimen के संदर्भ में केवल type शब्द का उपयोग किया गया हो तो इसका अर्थ holotype से होता है ।
- Topotype (मूल स्थान प्रारूप ) – जिस स्थान से Holotype तैयार करने के लिए plant specimen का चयन किया गया हो एवं उसी स्थान से कोई अन्य specimen फिर एकत्र किया जाता है तो ऐसे plant specimen को Topotype कहा जाता हैं।
3. Low of Priority ( प्राथमिकता का नियम ) –
- इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक वर्गक का केवल एक ही शुद्ध नाम होता है ।
- यह वह नाम है जो सर्वप्रथम विधिसंगत (legitimale) रूप से दिया गया हो तो ऐसे नाम को priority दी जाती हैं तथा इस नाम का प्रयोग न्याय संगत होता है।
- परंतु प्राथमिकता का सिद्धान्त family से ऊँचे वर्गकों के लिए लागू नहीं होता है ।
- यदि एक वर्गक के एक से अधिक विधि संगत नाम है तो उस स्थिति में जो नाम पहले प्रकशित होता है व्ही स्वीकार होगा।
जैसे – Genus Nymphaea के तीन द्विनाम है।
1 . Nymphaea nouchali Burm wildlife 1768
2 . N. pubesence wild 1799
3. N. torus Hook f.et T. 1872
निम्न उदाहरण में Nymphaea nouchali शुद्ध नाम है क्योकि यह सर्वप्रथम प्रकाशित हुआ था
4. कुलों का नाम (Names of the families)-
- कुल का नाम एक बहुवचन विशेषण (plural adjective) होता है।
- यह उस कुल के किसी वंश को विधि संगत दिये गये लेटिन नाम में -aceae प्रत्यय (suffix) लगाने से बनता है।
- उदाहरणार्थ, कुल राज़ेसी (Rosaceae ) का नाम इसके वंश रोज़ा (Rosa) में-aceae प्रत्यय लगाने से बना हे।
- परन्तु यह सिद्धान्त संवहनी पौधों के आठ कुलों में लागू नहीं होता । इन आठ कुलों के अन्त में-aceae प्रत्यय नहीं जोड़ा जाता परन्तु फिर भी, अधिक समय से प्रयोग किये जाने के कारण ये नाम मान्य हैं।
- इन कुलों के विकल्प नाम (alternative name ) जो-aceae प्रत्यय से समाप्त होते हैं, ICBN द्वारा 2000 ई. में प्रकाशित किये गए इन्हे Sant luice code के नाम से भी जाना जाता है -,ये कुल निम्न प्रकार हैं:
प्रचलित नाम | विकल्प नाम |
Palmae | Arecaceae |
Gramineae | Роасeae |
Cruciferae | Brassicaceae |
Leguminosae | Fabaceae |
Guttiferae | Clusiaceae |
Umbelliferae | Apiaceae |
Labiatae | Lamiaceae |
Compositae | Asteraceae |
5. वश का नाम (Name of the genus/ genera )-
- वंश का नाम एक संज्ञा (noun) शब्द होता है, और सदैव बढ़े अक्षर (Capital) से आरम्भ होता है ।
- ये नाम प्रायः एक वचन (singular) में होते हैं ।
- Genus का नाम किसी भी स्त्रोत अथवा स्वेछिक रूप से रखा जा सकता है
- सभी एक जैसे पौधों के लिए एक ही generic नाम प्रयुक्त होगा।
- Genus के नाम में पुर्लिंग के लिए – um ( Carum, Anethum) स्त्रीलिंग के लिए – is (Iberis, Calotropis ) नपुसकलिंग के लिए – -a (Alstonia, Rauwalfia ) शब्द स्तेमाल किये जाते है।
- प्रारम्भ में वंशीय नाम केवल लैटिन शब्दों में ही हुआ करते थे परन्तु अधिक पौधों की खोज होने के कारण अब अनेक वंशों के नाम प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के नाम का लैटिनीकरण करके, जैसे – Theophrastus के नाम पर Theophrasta , Hooker के नाम पर Hookera, Linnaea वंश का नाम Carolus Linnaeus के नाम पर रखे गये हैं ।
- इसी प्रकार कुछ वंशों के नाम उनकी खोज के स्थान पर व क्षेत्रीय नामो के आधार पर भी रखे गये हैं । जैसे – Sibiria साइबेरिया से, Araucaria – चिली के स्थान ओरोको से प्राप्त किया गया है
- तथा लाक्षणिक गुणों के आधार पर जैसे – Xanthoxylum – yellow wood, Leucodendron – Silver tree etc.
- पौराणिक उत्पत्ति – Theobroma, Narcissus
- सामान्यतः वंश के नाम में केवल एक ही शब्द होता परन्तु कुछ वंशों के नाम में दो शब्द हैं। ऐसी स्थिति में दोनों शब्दों को हाइफन (hyphcn) द्वारा जोड़ दिया जाता ।
6. जाति का नाम (Name of thc specics)–
- जाति का नाम सामान्यतः छोटे अक्षर से आरम्भ होता है तथा इसमें एक अथवा दो शब्द होते हैं। यदि किसी जातीय नाम में दो अथवा अधिक शब्द हों तो उन्हें हाइफन (hyphon) लगाकर जोड़ दिया जाता है, जैसे Hibiscus rosa-sinensis,
जातीय नाम निम्नलिखित स्रोतों से लिये जा सकते हैं:
(1) जातीय गुणसूचक शब्द (species epithet) किसी प्रतिष्ठित वनस्पतिज्ञ के नाम पर आधारित हो सकता है। ऐसी दशा में ये नाम बड़े अक्षर से आरम्भ होता है,
Ex. Carer Duisi का नाम Davis, Berberis Thunbergii का नाम Thunberg के नाम पर, Allangium Lamarckii – Lamark के नाम पर रखा गया है। इस प्रकार के जातीय नाम किसी भी लिंग में हो सकते हैं
(2) जातीय नाम पौधे के किसी विशेष लक्षण अथवा जहां वह पाया जाता है उस स्थान के नाम पर भी रखे जा सकते हैं। ऐसे जातीय नामों का लिंग वंशीय नाम के लिंग के समान होता है।
Ex. लक्षण के आधार पर – Ranunculus aqualis, Salix alba- White willow, Quercus rubra -red oak
स्थान विशेष के आधार पर – Rosa indica, Iris kashmiriana
(3 ) जातीय नाम वर्णनात्मक विश्लेषण (descriptive adjective) हो सकते हैं । ऐसे नाम दो अथवा अधिक शब्दों के लैटिनीकरण से बनाये जाते हैं ।
Ex- जातीय नाम-quadricularis चार पत्ती युक्त जाति के लिए
latifolia चौड़ी पत्ती वाली जाति के लिए, व
angustifolia संकीर्ण पत्ती के लिये तथा
Cordifolia हृदयाकार पत्ती वाली जाती के लिए बनाये गये हैं ।
(4) यदि जाति किसी वंश से समानता दर्शाती हो तो इन वंशों के नाम में प्रत्यय (suffix) जोड़ कर जातीय नाम बनाये जाते हैं।
जैसे – quercifolia जातीय नाम Quercus की पत्तियों से, व bignonioides-Bignonia वंश से समानता दर्शाता है।
प्रत्येक दशा में जातीय उप नाम, वंश उप नाम से भिन्न होना चाहिये । ऐसे नाम जिनमें वंश और जाति उप नाम समान हो, पुनर्नाम (laulonyms) कहलाते हैं,
जैसे Linaria linaria तथा Phragmites Phragmites । इस प्रकार के नाम पादप नामकरण पद्धतियों में अवैध
illegitimate माने जाते हैं।
7. खेतीहर पौधों के नाम (Names of plants in cultivation) –
यदि किसी जंगली पौधे को कृषि में प्रयोग किया जाये तो उसका वास्तविक नाम बदला नहीं जाता है ।
8. Rule of Validity (वैधता का नियम)–
- इसके अनुसार किसी भी वानस्पतिक नाम का प्रकाशन वैध अथवा मान्य (valid) होना चाहिए।
(1) प्रकाशन (नामकरण) प्रभावी (effective) होना चाहिए तथा यह उस नामकरण से संबंधित जानकारी,
को प्रेषित करने में सार्थक हो जिसके लिए इसका प्रकाशन किया गया है ।
(2) जिस वर्गक का प्रकाशन किया गया है उस प्नवीन वर्गक (Taxon) का वर्णन प्रकाशन के साथ संलग्न होना चाहिए, साथ ही इससे सम्बन्धित संदर्भ भी साथ में संलग्न करना आवश्यक है।
(3) प्रकाशन का वर्णन लैटिन भाषा में होना चाहिए।
(4) यदि वैध प्रकाशन के लिए निर्धारित समंस्त स्थितियाँ एक साथ पूरी नहीं हो पा रही हैं तो
अंतिम आवश्यक शर्त पूर्ण होने पर भी इस प्रकाशन को वैध मान लिया जायेगा।
9.Rule of Effectivity (प्रभाविता का नियम) –
उस वानस्पतिक साहित्य या प्रकाशन को प्रभावी (effective) माना जाता है, जिसमें अपना संदेश, संप्रेषित करने की क्षमता होती है ।
प्रकाशन को प्रभावी बनाने के लिए निम्न तथ्यों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है-
(1) प्रकाशित सामग्री का पुस्तकालयों, शोध प्रयोगशालाओं एवं वनस्पतिशास्त्रियों के बीच व्यापक.
प्रसार किया जावे ।
(2)1 जनवरी, 1953 या इसके पश्चात् नई खोजी गई पादप प्रजाति के नाम का प्रकाशन वैज्ञानिक शोध पत्रिका (scientific research journal ) में होना चाहिए ।
(3) प्रकाशन को Index Kewensis, Biological
abstract,Indian science abstracts एवं INSDOC जैसी संस्थाओं को भेजा जाना चाहिए ।
(4) प्रभावी प्रकाशन की तारीख उस दिन को माना जायेगा जिस तिथि को प्रकाशन मुद्रित रूप से
उपलब्ध होता हैं।
वैध तथा प्रभावकारी प्रकाशनों की शरतें (Conditions of effective and valid publications) –
नामकरण की संहिता के अनुसार कोई भी नया नाम सम्बन्धी प्रकाशन तभी प्रभावशाली माना जायेगा , जब इसके सम्बन्ध में printed matter सार्वजनिक रूप से अथवा कम से कम 10 botanical institutions पुस्तकालयों में वितरित कर दी गई हो । इस प्रकाशन की प्रभावी तिथि वह होती है जब इसके सम्बन्ध में मुद्रित सामग्री उपलब्ध करा दी जाती है ।
वर्गकों के नामों के प्रकाशन के सम्बन्ध में निम्नलिखित महत्वपूर्ण नियम हैं:
(i) प्रकाशन तभी प्रभावकारी होगा, जब उसका वितरण उपरोक्त आधार पर कर दिया गया हो,
(ii) इस प्रकाशन के साथ पूर्ण विवरण अथवा इससे पहले प्रकाशित प्रभावशाली विवरण का संदर्भ दिया जाना चाहिये,
(iii) इसके साथ पौधे का लैटिन भाषा में विवरण अथवा वह पूर्व संदर्भ (जहाँ पर इसका लैटिन में विवरण दिया गया हो) दिया जाना चाहिये,
(iv) 1 जनवरी, 1958 अथवा उसके पंश्चात् प्रकाशित किसी कुल अथवा उसके नीचे के श्रेणी के वर्गक के साथ उसका नामकरण प्ररूप भी दिया जाना चाहिये।
10. Latin Diagnosis (लैटिन भाषा निदान) –
इस नियम के अनुसार 1 जनवरी, 1955 के बाद किसी भी नये वर्गिकीय वर्गक (Taxa) का वर्णन बिना लैटिन अनुवाद के मान्य नहीं होगा । इसके पूर्व किसी भी अन्य भाषा में वर्णन को स्वीकार कर लिया जाता था।
11. Citation of Author’s Name ( लेखक नाम संदर्भ ) –
(1)किसी भी स्तर के वर्गक या वर्गिकीय श्रेणी (Taxa) के नाम के साथ लेखक का नाम अनिवार्य रूप
से होना चाहिए।
जैसे – Liliaceae Adans, Garuga Roxb. Garuga pinnata Roxb.
(2) यदि किसी पौधे का नामकंरण एक लेखक द्वारा किया गया हो, किन्तु कुछ समय बाद कोई दूसरा वैज्ञानिक भी किसी मान्य विधि द्वारा उसी पौधे के प्रामाणिक वर्णन का प्रकाशन करें तो दोनों लेखकों के नाम (in short) पौधे के नाम के बाद लिखे जाने चाहिए,
जैसे- Cissampelos pariera Buch-Ham. ex DC.
बुचानन एवं हेमिल्टन (Buch- Ham)
de Candolle -DC)
(12 ) Nomina generica conservanda (नोमिना जेनेरिका कंजरवेन्डा)
इस नियम के अनुसार पुराने व प्रचलित नामो को संरक्षित करने के लिये वैज्ञानिको द्वारा स्टॉकहोम कांग्रेस में वंश, कुल तथा आर्डर के संवर्ग में नामों के संरक्षण के लिए नियम बनाये गए तथा W.H. Kemp etal. 1948 द्वारा सम्पादित करअसंस्थागत संस्करण प्रकाशित किया गया इसमें असंवहनी पौधों के 237 तथा संवहनी पौधों के 787 संरक्षित नामों की सूची प्रकाशित की गई
सिडनी कांग्रेस में 1981 में प्रथम बार Triticum aestivicum के नाम के बारे में निम्न तथ्य प्रस्तुत किया गया – लिनियस ने 1753 में ट्रिटिकम की दो जातियों ट्रिटिकम एस्टीविकम व ट्रेटिकम हाइबरनम का वर्णन किया। नामकरण के सिद्धान्त के अनुसार अगर कोई दूसरा लेखक इन नामों को मिलाता है तब उसके पास चयन का अधिकार होता है कि वह किस द्विनाम (binomial) को रखना उचित समझेगा।
- लिनियस ने 1753 में टमाटर का नाम सोलेनम लाइकोपरसिकम रखा था।
- पी. मिलर ने लिनियस द्वारा वर्णित इसी जाति का नाम लाइकोपरसिकम एस्क्यूलेन्टम रख दिया।
- कार्सटन ने 1882 में पुनः नाम बदलकर लाइकोपरसिकम लाइकोपरसिकम लिन. कास्स्ट, रखा। इसमें जातीय संकेतक लिनियस का लेने के कारण यह टॉटोनिम बन गया अतः अस्वीकार्य था ।
- निकलसन ने 1968 में रखा गया नाम लायकोपरसिकॉन लायकोपरसिकम नाम दिया जो शुद्ध नाम माना गया
- किन्तु मिलर द्वारा 1768 में रखा गया नाम लाइकोपरसिकम एस्क्यूलेन्टम ज्यादा पुराना व अधिक प्रयोग में लिया हुआ नाम था अतः इसे संरक्षित करने के लिये ई. टेरिल (E. Terrel) ने 1983 में प्रस्ताव रखा वह मान लिया गया तथा यह नाम संरक्षित कर लिया गया जो वर्गिकी पर्याय (Taxonomic synonyms) के संकेत (=) द्वारा इंगित किया जाता है।
- अगर यह नामकरण पर्याय (Nomenclatural synonym) हैं तब उस स्थिति में बराबर(==) संकेत लिखा जाता है अस्वीकार करके दूसरा नाम संरक्षित किया गया है।
उदाहरण –
- लायकोपरसिकॉन एस्क्यूलेंटम मिल. 1768 (==)लायकोपरसिकॉन लायकोपरसिकम (एलं. एच. कर्सटन, 1882),
- ट्रिटिकम एस्टीविकम एल. 1753 (=) ट्रिटिकम हायबरनम एल., 1753 आदि ।
13 ; Other Rules (अन्य नियम ) –
(1) जब एक वंश को दो या अधिक वंशों में विभाजित किया जाता है तो प्रारम्भिक, प्रामाणिक एवं
मौलिक होलोटाइप वंश के लिए रखा जाता है । जब किसी प्रजाति का विभाजन आगे चलकर अन्य प्रजातियों
के रूप में किया जाता है तब भी इसी नियम की पालना की जाती है।
जैसे-Acer sacchrum Marsh. नामक एसर (Accr) की प्रजाति को दो अलग-अलग प्रजातियों में क्रमश:Acer sacchrum Marsh एवं Acer nigrum Michx, F के रूप में विभाजित किया गया था लेकिन इसमें मौलिक नाम होलोटाइप (hololype) के लिए रखा गया है ।
(2) जब किसी पादप प्रजाति को अन्य वंश में मिला दिया जाता है, तो मिलाने के बाद भी spccific cpithet उसके साथ बना रहता है।
जैसे – American larck नामक वृक्ष का वास्पतिक नामकरण Du Roi द्वारा Pinus lariciana Du Roi के नाम से किया गया। परन्तु बाद में Michaux ने इसे अन्य कोनीफर वंश Larix की एक प्रजाति के रूप में स्थापित किया तथा इसके नाम को परिवर्तित करके, इसका नाम Larix americana Michx. रखा । परन्तु उपर्युक्त नियमानुसार यहाँ माइकॉक्स द्वारा नामकरण गंलत है क्योंकि spccific cpithet, americana नहीं होकर इसके लिए lariciana होना चाहिए था बाद में इस त्रुटि का निदान के. कोच (K. Koch) के द्वारा किया गया तथा उन्होंने इसका सही नामकरण Larix lariciana Du Roi Koch. के रूप प्रस्तुत किया।
(3) जब दो या दो से अधिक समान स्तर वाली वर्गिकीय श्रेणियों (Taxa) को मिलाया जाता है तो
इनमें प्राचीनतम विशेषण या नाम को ही चयनित किया जाता है। अगर दोनों नाम समकालीन या एक दिन
प्रस्तुत हुए हों तो इस कार्य को सम्पादित करने अर्थात् नाम को जोड़ने वाला लेखक अपनी इच्छा से किसी
एक को चुन सकता है।
(4) जब किसी वर्गिकीय (taxonomic category) श्रेणी के स्तर में परिवर्तन किया जाता है अर्थात्
वंश (genus) को कुल (family) में या कुल को वंश में परिवर्तित किया जाता है तो सबसे पुराना नाम या
प्राचीनतम विशेषण नवीन वर्गक (Taxon) को प्रदान किया जाता है ।
14. नाम को अस्वीकृत करना या अस्वीकरण (Rejection of Names)-
(1) किसी भी पौधे का नाम या पद संकेतक (name or epithet) केवल इसलिए अस्वीकृत, रूपान्तरित या परिवर्तित नहीं किया जा सकता है कि वह भली भाँति चयनित नहीं है या सहमति योग्य नहीं; या यदि इसका दूसरा नाम रख दिया जावे तो वह भी अधिक प्रसिद्ध होगा अथवा और अच्छी तरह से जाना जायेगा ।
(2) केवल अवैध नाम को ही अस्वीकृत किये जाने योग्य माना जा सकता है । यहाँ अवैध नाम से तात्पर्य निम्न कमियों या त्रुटियों वाले नाम से है –
(i) नामकरण पद्धति के अनुसार एक से अधिक नाम हो या कृत्रिम एवं सतही (superfluous) नामकरण (nomenclature) हो ।
(ii) जब नामकरण निर्दिष्ट धाराओं या उपनियमों के अनुसार नहीं किया गया हो ।
(iii) यदि एक ही नाम दो प्रजातियों को दिया गया हो (समनाम homonym ) तो बाद में दूसरी प्रजाति को दिया गया नाम अवैध होगा।
(iv) यदि यह अस्वीकृत करने योग्य वंशीय (generic name) नाम हो ।
(v) यदि यह प्रजातीय नाम (specific name) ऐसे क़ार्य अथवा शोधं लेख प्रकाशन के अन्तर्गत प्रकाशित हुआ हो,जिसमें binomial nomenclature का अनुसरण नहीं किया गया हो।
(v) यदि कोई नाम पुनर्नाम या टाटोनिम (taulonym) हो तो वह अस्वीकृत किये जाने योग्य है,
जैसे- Phragmites phragmites
(3) किसी वर्गक (Taxon) का यदि कोई नाम भ्रांतिपूर्ण हो, या भ्रम (confusion) उत्पन्न करता हो या इस नाम के कई अर्थ निकलते हों तो ऐसे नाम को छोड़ देना चाहिए,ऐसे नामों को संदिग्ध नाम या Nomina ambigua कहते हैं ।
(4) दो अलग-अलग तत्त्वों को मिलाकर बने हुए वर्गक (Taxon) के नाम को अस्वीकृत कर दिया
जाना चाहिए।
Ex. एक चीनी संग्रहकर्तो ने एस्कुलस (Aesculus) के पादप प्रतिरूप की अपनी शीट में शीर्षस्थ कलिका के ऊपर वाइबरनम (Vibemum) का पुष्पक्रम संलग्न कर दिया, इस हरबेरियम शीट प्रतिरूप के आधार पर ओलिवर ने इस पादप वंश का नामकरण एक्टिनोटिनस (Actinotinuus) पादप रूप में किया परन्तु यह वंश क्योंकि 2 भिन्न वर्गक (पादप) तत्वों के संश्लेषण से बनाया था, अतः यह नामकरण प्रारम्भ से ही गलत है। इसे भ्रांत नाम या Nomen confusum कहते हैं ।
(15) अवैधानिक वंशीय नामों (generic names) को अस्वीकृत कर दिया जाना चाहिए । ऐसा निम्न परिस्थितियों में किया जा सकता है-
(i) यदि इनके शब्द उद्देश्यपूर्ण न हों ।
(ii) आकारिकी लक्षणों को निरूपित करने वाले शब्द तकनीकी शब्दों के समान हों ।
(iii) यदि अपने प्रजातीय नाम के समान हो।
(iv) यदि उनमें 2 अलग-अलग एवं बिना हाइफन वाले शब्द हों।
(6) वे अवैधानिक प्रजातीय नाम भी अस्वीकृत कर दिये जाने योग्य होते हैं, जो –
(i) उद्देश्यविहीन शब्दों वाले हों ।
(ii) विस्तृत विवरण (enumeration) के लिए प्रयुक्त सामान्य विशेषण हों ।
(iii) अगर ये वंशीय नाम (generic name) की पुनरावृति करते हों अर्थात् पुर्ननाम हों ।
(iv) अगर ये प्रजातीय नाम ऐसे प्रकाशन में उल्लेखित किये गये हों, जिसके अन्तर्गत द्विपद नाम पद्धति का अनुसरण नहीं किया गया हो।
(7) टाइपिंग या हस्तलेख में की गई भूल को छोड़कर नामकरण में नाम के मौलिक अक्षर विन्यास को बनाये रखना चाहिए ।
C. सुझाव या संस्तुति (Recommendations) :
इसके अन्तर्गत नामकरण सम्बन्धी नियमों के उपयोगों की व्याख्या की गई है। इन सुझावों
(rccommendations) का उद्देश्य भविष्य में किये जाने वाले पादप नामकरण (plant nomenclature)
एकरूपता एवं स्पष्टता (uniformity and clearity) स्थापित करना है। उदाहरण के लिए यहाँ एक
संस्तुति को लिया जा सकता है, जो निम्न है –
सभी प्रजातीय एवं तृतीयक नाम या पद संकेत (all specific and trivial name or epithets)
अप्रजी के छोटे अक्षर (small letter) से प्रारम्भ किये जाने चाहिए। अपवाद स्वरूप अंग्रेजी के बड़े अक्षरों
(capital letter) का उपयोग प्रजातीय नाम के लिए तभी किया जा सकता है जब वे सीधे मनुष्यों के
औराध्य देवों के नाम से लिये गये हों। यह उल्लेखनीय तथ्य यहाँ है कि आजकल भारत सहित अधिकांश