Chara

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कारा (Chara)

Classification-

Division-Chlorophyta

Class- Charophyceae

Order-Charales

Family-Characeae

Genus-Chara

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प्राप्ति स्थान (Occurence)-

  • कारा अलवणीय जल में रहने वाले निमग्न जलीय शैवाल हैं। यह स्थिर जल वाले जलाशयों के किनारों पर उथले जल में मुलाभासो द्वारा पंक (mud) में स्थिर होतीं हैं।
  • कारा सामान्यतः कम ऑक्सिजन युक्त तथा कठोर जल में अधिकता से पाया जाता है।
  • कठोर जल में उगने वाली जातियों की सतह कैल्शियम कार्बोनेट के निक्षेपण के कारण कठोर हो जाती हैं इसलिए यह शैवाल स्टोन वर्ट कहलाता है।
  • कारा की 180 से अधिक जातियाँ पायी जाती हैं तथा भारत में 27 जातियाँ पायी जाती हैं।

पादप संरचना (plant structure)-

  • कारा का पादप निमग्न तथा दीर्घ काय होता हैं।
  • इसकी कुछ जातियाँ 20-40cm. तक लम्बी होतीं हैं। कुछ बहुवर्षीय जातियों में पादप शरीर मुलाभासो तथा मुख्य अक्ष में बंटा होता हैं।
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1.मुलाभास (Rhizoids)-

  • मुलाभास की सहायता से यह भूमि पर स्थिर रहता हैं। मुलाभास भूरे शाखित बहुकोशीय एवं पट्ट युक्त होते हैं।
  • ये मुख्य अक्ष के आधार अथवा नीचे की पर्वसन्धियों से बनते हैं।
  • मुलाभास में तिर्यक पटो की उपस्थिति कारा का विशिष्ट गुण है।
  • पटो पर सलंग्न कोशिकाओं के सिरे विपरीत दिशाओं में अपांकुचित रहते हैं जिसके परिणाम स्वरूप प्रत्येक पट पर 4  अथवा अधिक कोशिकाओं की एक ग्रन्थिल संरचना बन जाती हैं।
  • इसे मुलाभासी पट्टिका कहते है।

2.मुख्य अक्ष (Main axis)

  • अक्ष पर एकान्तर क्रम में पर्व सन्धियों व पर्व पाये जाते हैं।
  • पर्व दो प्रकार की कोशिकाओं से बनी होतीं हैं।
  • इनके अक्ष में एक लम्बी कोशिका होतीं हैं जिसे अक्षिय कोशिका अथवा पर्वकोशिका (internodal) कहते है।
  • पर्व का ऊपरी पर्व सन्धि की वल्कुट कोशिकाए तथा निचली भाग की पर्वसन्धिकी वल्कुट कोशिकाओं से घिरा रहता है।
  • पर्व सन्धि बहुकोशिकीय तथा जटिल होतीं हैं।
  • अक्ष की परिधीय कोशिकाओं में निम्न प्रकार की संरचनाएं बनती हैं।

a) सीमित वृद्धि की शाखाएँ(limited growth branches)

  • मुख्य अक्ष की प्रत्येक पर्व सन्धि से चक्रिक रूप में कई निश्चित वृद्धि वाली शाखाएँ निकलती हैं इन्हें प्राथमिक़ पार्श्वीय शाखाएँ या पर्व भी कहते हैं।
  • इन शाखाओ में 5-15 तक पर्व तथा पर्वसन्धिया बनने के बाद वृद्धि रुक जाती हैं। इसलिए इन्हें सीमित वृद्धि की शाखाएं कहते हैं।
  • सीमित वृद्धि की शाखाओ की पर्व सन्धियों पर नर व मादा जननांग पाये जाते हैं।
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b) असीमित वृद्धि की शाखाएँ (Branches of unlimited growth)

  • मुख्य अक्ष की किसी- किसी पर्व सन्धि से एक या दो शाखायें निकलती हैं। जिनकी वृद्धि अनिश्चित समय तक होती रहती हैं।
  • प्रत्येक ऐसी शाखा निश्चित वृद्धि वाली शाखा के कक्ष में से निकलती हैं
  • इन्हें कक्षीय शाखाएँ या दीर्घ पार्श्व भी कहते है।
  • ये शाखायें भी पर्व व पर्वसन्धियो में बंटी होतीं हैं।
  • इसकी उत्पति प्राथमिक पर्व सन्धि कोशिका से होती हैं।

c) अनुपर्णक (Stipulodes)

  • ये एक कोशिकीय संरचनाएं,  असीमित वृद्धि की शाखाओं तथा मुख्य अक्ष की आधारीय पर्व सन्धियों पर पायीं जाती है जिन्हें अनुपर्णक कहते है।
  • कुछ जातियों की प्रत्येक पर्व सन्धि पर अनुपर्ण को की संख्या उस पर्व सन्धि पर उपस्थित सीमित वृद्धि की शाखाओं के बराबर होती हैं।
  • यह स्थिति एक अनुपर्णकि कहलाती हैं। परन्तु अधिकतर जातियों में प्रत्येक सीमित वृद्धि की शाखा के आधार पर दो अनुपर्णक होते है
  • इन जातियों को द्वि अनुपर्णकी कहते हैं।
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d) वल्कुट (Cortex)

  • कारा की कुछ जातियों में पर्व कोशिका के चारों ओर कम चौड़ी कोशिकाए घेरा बनाती हैं जिसे वल्कुट कहते हैं। तथा जिनमें वल्कुट नहीं पाया जाता हैं इन्हें वल्कुट हीन जाति कहा जाता हैं।
  • वल्कुटी तन्तुओं की पर्व सन्धि कोशिकाओं में पार्श्व विभाजन होता हैं जिससे एक व दो परिधीय कोशिकाएँ बनती हैं।
  • वल्कुट तन्तुओं की आकारिकी विशेषता पार्श्वीय शाखाओ के समान होती हैं क्योंकि इनमें शीर्ष कोशिका तथा पर्व सन्धि पाये जाते हैं।

कोशिका संरचना (Cell structure)

  • कोशिका भित्ति सेल्यूलोज की बनी होती हैं। इसके भीतरी भाग में अनियमित स्थूलन पाया जाता हैं।
  • भित्ति की बाहरी परत जिलेटिनी होती हैं जिस पर कैल्शियम कार्बोनेट (CaCo3) पाया जाता हैं।
  • पर्वसन्धि कोशिकाएँ छोटी तथा लगभग समव्यासी होती हैं। इनमे सघन जीवद्रव्य, एक केन्द्रक तथा अनेक हरित लवक पाये जाते हैं। जीवद्रव्य में छोटी-छोटी रिक्तिकाए पायीं जाती हैं।
  • पर्व की कोशिकाएँ पर्व सन्धि की कोशिकाओं की तुलना में बहुत अधिक लम्बी होतीं हैं।
  • कोशिका द्रव्य दो भागों में बंटा रहता है जिसे बाह्य जीवद्रव्य (Exoplasm) तथा अन्तः जीवद्रव्य (endoplasm) कहते हैं।
  • इन्हें क्रमशः प्लाजमा जेल तथा प्लाज्मा सोल भी कहा जाता हैं।
  • प्लाज्माजेल कोशिका भित्ति के सम्पर्क में तथा प्लाज्मोसोल रिक्तिका झिल्ली के सम्पर्क में रहता है।
  • सभी प्रकार की कोशिकाएँ जीवद्रव्य भृमण प्रदर्शित करती हैं।
  • पर्व कोशिका के जीवद्रव्य का प्लाज्मासोल (अन्तःजीवद्रव्य) निरन्तर घूर्णन प्रदर्शित करता है।
  • प्लाज्मासोल निरन्तर ऊपर तथा दूसरी ओर नीचे को प्रवाहित होता रहता है।
  • कोशिका भित्ति में उपस्थित प्रोटींन तन्तुओं के कमानुकुंचन के कारण जीवद्रव्य भृमण की क्रिया होतीं हैं।
  • इन तन्तुओं के नियमित संकुचन एवं फैलाव के कारण प्लाज्मासोल में लहर उत्पन्न होती हैं।
  • इन कोशिकाओं में एक केन्द्रक होता हैं जिसमें समसूत्री विभाजन के द्वारा ये कोशिकाएँ बहुकेन्द्रकी हो जाती है।
  • इनमे अनेक छोटे- छोटे दीर्घ वृतिय क्लोरोप्लास्ट पाये जाते हैं।
  • इनमे संचित भोजन स्टार्च के रूप में पाया जाता हैं।
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वृद्धि (Growth)

  • कारा के मुख्य अक्ष  तथा शाखाओं की वृद्धि एक गुम्बदाकार शिखाग्र कोशिका से होतीं हैं।
  • इनके अनुप्रस्थ विभाजन से निचले भाग में व्युत्पन्न कोशिकाए बन जाती हैं जो एक पंक्तिमें व्यवस्थित रहती हैं।
  • प्रत्येक व्युत्पन्न कोशिका में एक ऊपरी उभ्यावतल पर्व सन्धि प्रारम्भिक तथा नीचे वाली उभ्योतल पर्व प्रारम्भिक का निर्माण होता हैं।
  • पर्व प्रारम्भिक कोशिका में विभाजन नहीं होता।
  • यह दीर्घित होकर पर्व कोशिका का निर्माण करती हैं।
  • पर्व सन्धि प्रारम्भिक में एक दूसरे के समकोण पर अनेक उदग्र विभाजन होते हैं जिसके फलस्वरूप दो केन्द्रीय कोशिकाएँ तथा 6-20 तक परिधि कोशिकाओं का निर्माण होता हैं।
  • परिधीय कोशिकाओं में परिनतिक भित्ति बन कर बाहय परिधीय कोशिकाएँ प्राथमिक पार्श्वों के लिए शिखाग्र कोशिका के रूप में कार्य करती हैं।

जनन (Reproduction)-

  • कारा में जनन कायिक तथा लैंगिक विधि द्वारा होता हैं बीजाणुओं द्वारा अलैंगिक जनन का पूर्ण अभाव होता हैं।

1. कायिक जनन (Vegetative reproduction)

2 लैंगिक जनन (Sexual reproduction)

1.कायिक जनन (Vegetative Reproduction)

  • कायिक जनन में थैलस पर कई प्रकार की अतिवृद्धिया बनती हैं।
  • प्रत्येक अति वृद्धि मातृ थैलस से अलग होकर नये थैलस का निर्माण कर लेती हैं।
  • कारा में कायिक जनन निम्न विधियों से सम्पन्न होतीं हैं-

a) एमाइलम स्टार (Amylum star)

  • यह तारे के समान संरचना होतीं हैं जो निचली पर्व सन्धियों पर कोशिकाओं के समूह से बनती हैं।
  • इनकी कोशिकाओं में एमाइलम स्टार्च की मात्रा अधिक होतीं हैं।
  • ये कोशिकाए एमाइलम स्टार मातृ कोशिका से अलग होकर नये पौधों का निर्माण करती हैं।
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b) पत्र कलिकाओं द्वारा (By bulbils)-

  • पत्र प्रकलिका सूक्ष्म, गोल, कन्द के समान संरचनाएँ होतीं हैं। ये बहुकोशिकीय होतीं हैं।
  • मुख्य पादप से अलग होकर कारा के नये पादप का निर्माण करती हैं।

c) अनियमित पत्र प्रकलिकाए

  • कारा की कुछ जातियो में मुख्य अक्ष अथवा मुलाभासो की निचली पर्व सन्धियों पर पार्श्व ऊर्ध्व के रूप में अनेक खाद्य पदार्थों से भरी सूक्ष्म कोशिकाओं के समूह पाये जाते हैं।
  • इन्हें अनियमित पत्र प्रकलिकाए कहते है।

d) द्वितीयक प्रोटोनिमा द्वारा(By sec. protonema)

  • जीर्ण पौधे की सजीव पर्व सन्धियों पर मुख्य अक्ष की निचली पर्व सन्धियों तथा प्राथमिक प्रोटोनिमा की पर्व सन्धि से तन्तुनुमा अपस्थानिक शाखाएँ विकसित होतीं हैं।
  • जिन्हें द्वितीयक प्रोटोनिमा कहते हैं।
  • इन तन्तुओं की पर्वसन्धि से पार्श्व शाखा के रूप में कारा पादप बनता है।

2.लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

  • कारा में लैंगिक जनन अधिक विकसित विष्म युग्मकी प्रकार का होता हैं।
  • नर तथा मादा जननांग निश्चित वृद्धि वाली शाखाओं की पर्व सन्धियों पर स्थित होते हैं।
  • नर जननांग पुंधानी अथवा ग्लोब्युल (Globule)  तथा मादा जननांग अंडधानी अथवा न्यूक्यूल (Nucule) कहलाते हैं। कारा उभ्यलिंगाश्रयी व एकलिंगाश्रयी हो सकता हैं।

1.पुंधानी या ग्लोब्युल (Antheridium or Globule)

  • परिपक्व पुंधानी एक बड़ी खोखली पीले तथा रंग की अत्यंत जटिल संरचना होतीं हैं।

2.लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

  • कारा में लैंगिक जनन अधिक विकसित विष्मयुग्मकी प्रकार का होता हैं।
  • नर तथा मादा जननांग निश्चित वृद्धि वाली शाखाओं की पर्व सन्धियों पर स्थित होते हैं।
  • नर जननांग पुंधानी अथवा ग्लोब्युल (Globule)  तथा मादा जननांग अंडधानी अथवा न्यूक्यूल (Nucule)  कहलाते हैं।
  • कारा उभ्यलिंगाश्रयी व एकलिंगाश्रयी हो सकता हैं।

1.पुंधानीया ग्लोब्युल (Antheridium or Globule)

  • परिपक्व पुंधानी एक बड़ी खोखली पीले तथा रंग की अत्यंत जटिल संरचना होतीं हैं।
  • यह पर्व सन्धि की सतह पर वृन्त से जुड़ीं रहती हैं।
  • इसका वृन्त एक कोशिकीय, बड़ा व पुंधानी के मध्य क्षेत्र तक धँसा रहता है।
  • इसकी भित्ति आसपास 8 अवतलोतल कोशिकाओं की बनी होतीं हैं। जिन्हें शील्ड कोशिका कहते है।
  • प्रारंभिक अवस्था में पुंधानी कोशिका में क्लोरोप्लास्ट होता हैं जिसके कारण ये हरी होतीं हैं।
  • लेकिन परिपक्व पुंधानी में क्लोरोप्लास्ट नष्ट हो जाता हैं। तथा केरोटिन बनने से ये नारंगी लाल या पीली दिखाई देती हैं।
  • शील्ड कोशिका की बाह्य भित्ति में अरीय अंतवर्ध होने से वह बहुकोशीय प्रतीत होतीं हैं।
  • प्रत्येक शील्ड कोशिका के केन्द्र से एक दण्ड रूपी बेलनाकार कोशिका विकसित होतीं हैं। जिसे मेनुब्रियम कहते हैं।
  • प्रत्येक मेनुब्रियम कोशिका के दूरस्थ छोर पर एक या अधिक गोलाकार कोशिका होतीं हैं जिसे प्रारम्भिक केपिटुलम कोशिका कहते हैं।
  • प्रत्येक प्रारंभिक केपिटुलम कोशिका कहते हैं।
  • प्रत्येक प्रारम्भिक केपिटुलम कोशिका से सामान्यतः द्वितीयक कोशिकाए उत्पन्न होतीं हैं।
  • इन कोशिकाओं के शीर्ष पर पुंधानी तन्तु अथवा पुमणुजन तन्तु होते है।
  • प्रत्येक पुंधानी तन्तु एक पंक्तिक बहुकोशिक संरचनाएं होतीं हैं।
  • इन तन्तुओं की प्रत्येक एक पुंधानी का कार्य करती हैं व प्रत्येक पुंधानी एक पुमणु का निर्माण करती हैं।
  • प्रत्येक ग्लोब्युल में 20,000- 50,000 तक पुमणु बनते हैं।
  • प्रत्येक पुमणु दीर्घित, सर्पिल एवं द्वि कशाभिक संरचना होतीं हैं।
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ग्लोब्युल का विकास (Development of globule)

  • निश्चित वृद्धि की शाखा की पर्व सन्धि की अभ्यक्ष सतह की परिधीय कोशिका में परिनतिक विभाजन से निर्मित दो कोशिकाओं में से बाह्य संतति कोशिका, पुंधानी प्रारम्भिक के रूप में कार्य करती हैं।
  • अंदर की ओर स्थित संतति कोशिका में परिनतिक विभाजन होता हैं।
  • इस विभाजन से दो कोशिकाएँ बनती हैं।
  • इन मे से निचली कोशिका पर्व कोशिका के रूप में कार्य करती हैं। तथा ऊपरी कोशिका से अंडधानी का विकास होता हैं।
  • पुंधानी प्रारंभिक में अनुप्रस्थ विभाजन होकर दो कोशिकाएँ बनती हैं।
  • आधारी वृन्त कोशिका तथा अन्तस्थ पुंधानी मातृ कोशिका, वृन्तकोशिका में अब और विभाजन नही पाया जाता हैं।
  • पुंधानी मातृ कोशिका वृद्धि कर के गोलाकार हो जाती हैं।
  • पुंधानी मातृ कोशिका में दो उदग्र विभाजनों द्वारा 4  कोशिकाएँ बनती हैं इसे चर्तुवांशक कहते हैं।
  • चारों कोशिकाओं चर्तुवांशक की सभी कोशिका में एक परिनतिक विभाजन होता हैं जिसके फलस्वरूप 8-8 कोशिकाओं की दो परतों का निर्माण होता हैं।
  • बाह्य व अन्तः परत में पुनः विभाजन होकर 8-8 कोशिकाओं की तीन अरीय परते बन जाती हैं।
  • बाह्य परत की कोशिकाएँ पार्श्व में फैलकर चपटी हो जाती हैं।
  • इनकी आकृति अवतलोतल प्रकार की पायी जाती हैं इन्हें शील्ड कोशिका कहते हैं।

पुमणुओ का विमोचन

  • पुमणुओ के परिपक्व होने पर पुंधानी की शील्ड कोशिकाओं पर आंतरिक दबाव बढ़ने से वे पृथक हो जाती हैं जिसके कारण पुंधानी आवरण में दरार बन जाती हैं।
  • दरारों से पुमणु पुंधानी गुहिका से जल में मुक्त होते है।

अंडधानी अथवा न्यूक्युल (Oogonium or Nucule)

  • यह निश्चित वृद्धि वाली शाखाओ की पर्व सन्धियों पर एक सूक्ष्म वृन्त द्वारा जुड़ी रहती हैं।
  • उभ्यलिंगाश्रयी जातियों में न्यूक्युल, ग्लोब्युल के ठीक ऊपर स्थित होतीं हैं।
  • अंडधानी एक बड़ी अंडाकार संरचना हैं जिसमें अण्ड पाया जाता हैं।
  • अण्ड में सघन जीव द्रव्य होता हैं। जिसमें प्रचुर मात्रा में स्टार्च कण तथा कुछ मात्रा में तेल के रूप में संचित होता हैं।
  • अण्ड शीर्ष पर एक काचाभ क्षेत्र होता है जिसे ग्राही बिंदु कहते है। अंडधानी के चारों ओर लम्बी सर्पिलाकार कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें नलिका कोशिका कहते हैं।
  • प्रत्येक कोशिका के शीर्ष पर एक छोटी कोशिका होतीं हैं। इस प्रकार अंडधानी के शीर्ष पर 5 छोटी कोशिकाओं के ताज का निर्माण होता हैं जिसे कोरोना कहते है।

न्यूक्युल का परिवर्धन (Development of Nucule)

  • उभ्यलिंगाश्रयी जाति में अंडधानी का विकास पुंधानी के आधार पर स्थित आधारी पर्व सन्धि कोशिका के व्युत्पन्न कोशिका द्वारा होता हैं।
  • अंडधानी प्रारम्भिक कोशिका में दो अनुप्रस्थ विभाजन से तीन कोशिकाओं की पंक्ति बन जाती हैं।
  • इनमे से निचली कोशिका वृन्त कोशिका, मध्य कोशिका पर्व सन्धि तथा ऊपरी कोशिका अंडधानी मातृ कोशिका कहलाती हैं।
  • निचली कोशिका में विभाजन नही होते है। जबकि लम्बी होकर अंडधानी के एक कोशिक वृन्त का निर्माण करती हैं।
  • अन्तस्थ कोशिका अंडधानी मातृ कोशिका का कार्य करती है।
  • इसके अनुसार विभाजन से एक आधारी व छोटी वृन्त कोशिका तथा एक ऊपरी व अपेक्षाकृत बड़ी अंडधानी कोशिका बनाती हैं।
  • अंडधानी कोशिका के आकार में वृद्धि के बाद इस में एक केन्द्रकी अण्ड का निर्माण होता हैं।
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निषेचन(Fertilization)

  • न्यूक्युल के परिपक्व होने पर निषेचन से पूर्व नलिका कोशिकाए कोरोना कोशिका के थोड़ा नीचे एक दूसरे से पृथक हो जाती हैं।
  • जिससे अंडधानी के चारों ओर लम्बी दरारे बन जाती हैं।
  • निषेचन के समय अंडधानी के शीर्ष भाग की कोशिका भित्ति का जिलेटिनिकरण हो जाता हैं।
  • अंडधानी का यह भाग पुमणु के लिए ग्राही बिंदु का कार्य करते है।
  • चल पुमणु अंडधानी में दरारों द्वारा प्रवेश करते है।
  • नर तथा मादा केन्द्रको के संलयन से निषिक्ताण्ड का निर्माण होता हैं।
  • निषिक्तण्ड निषेचन के बाद अपने चारों ओर सेल्यूलोज की भित्ति का निर्माण करते है।
  • इसकी कोशिका भित्ति  4  परतों में विभक्त हो जाती हैं।
  • दो बाह्य परते रंगीन तथा दो भीतरी परते रंगहीन होतीं हैं।
  • निषिक्तण्ड का द्विगुणित केन्द्रक अग्र सिरे पर स्थानांतरित हो जाता हैं।
  • अधिकांश स्टार्च तेल की बूंदों में परिवर्तित हो जाता हैं।
  • नलिका कोशिकाओं की बाह्य भित्ति नष्ट हो जाती हैं। तथा भीतरी भित्तियों पर सुबेरिन व सिलिका का जमाव हो जाता हैं।
  • निषिक्तण्ड टूट कर तालाब के पैंदे में बैठ जाता हैं तथा विश्राम में रहता हैं।
  • विश्रामवस्था वातावरण की प्रतिकूल परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं।
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निषिक्तण्ड का अंकुरण (germination of oospore)

  • अंकुरण के समय निषिक्तण्ड का द्विगुणित केन्द्रक शीर्ष की ओर बढ़ता है।
  • इस भाग में अर्द्वसूत्रीविभाजन से 4 अगणित केन्द्रित बनते है।
  • शीर्ष भाग के पास अनुप्रस्थ भित्ति के बनने से 2 असमान कोशिकाएँ बनती है।
  • छोटी मसूराकार अग्र कोशिका मे एक केन्द्रक तथा आधारी बड़ी कोशिका मे  3 केन्द्रक होते है मसूराकार कोशिका मे उदग्र विभाजन द्वारा प्रोटोनिमा प्रारम्भिक तथा मुलाभास प्रारंभिक का निर्माण होता हैं।
  • दोनो कोशिकाएँ विपरीत दिशाओं मे व्रद्धि करती है।
  • मुलाभास प्रारंभिक कोशिका मुलाभास का निर्माण करती हैं। तथा प्रथम तन्तु कोशिका प्रारंभिक प्रथम तन्तु का निर्माण करती है।
  • यह तन्तु पर्व तथा पर्व संधियों में बटा होता है।
  • इसकी निचली पर्व सन्धियों की परिधीय कोशिकाओं से मूलाभास तथा द्वितीयक प्रथम तंतुओं का विकास होता है।
  • ऊपरी पर्वसंधियों की परिधीय कोशिकाओं से उत्पन्न पार्श्वों से नए अक्षो का निर्माण होता है।

जीवन चक्र(Life Cycle)

  • कारा का पादप अगुणित होता हैं।
  • इसके जीवन चक्र में द्विगुणित अवस्था निषिक्तण्ड के निर्माण के समय ही आती हैं।
  • निषिक्तण्ड के अंकुरण के समय द्विगुणित केन्द्रक में अर्द्व सूत्री विभाजन होता हैं जिसमें अगुणित अवस्था पुनः प्रारम्भ हो जाती हैं अतः जीवन चक्र अगुणितकी होता हैं।
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कारा किस प्रकार के जल में पाई जाती है? a) समुद्री जल
b) अलवणीय जल
c) खारा जल
d) मीठा जल
उत्तर: b) अलवणीय जल
कारा में पाई जाने वाली कोशिका भित्ति किस पदार्थ की बनी होती है? a) स्टार्च
b) प्रोटीन
c) सेल्यूलोज
d) कैल्शियम
उत्तर: c) सेल्यूलोज
कारा में पुमणु का निर्माण किसके द्वारा होता है? a) ग्लोब्युल
b) न्यूक्यूल
c) मुलाभास
d) अनुपर्णक
उत्तर: a) ग्लोब्युल
कारा में अंडधानी किस प्रकार की संरचना होती है? a) लंबी और गोलाकार
b) छोटी और त्रिकोणीय
c) बड़ी और अंडाकार
d) पतली और रेखीय
उत्तर: c) बड़ी और अंडाकार
कारा की कितनी जातियाँ भारत में पाई जाती हैं? a) 10
b) 15
c) 27
d) 35
उत्तर: c) 27
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कारा में जनन किस विधि द्वारा होता है? a) कायिक
b) लैंगिक
c) दोनों
d) कोई नहीं
उत्तर: c) दोनों
पुंधानी या ग्लोब्युल के कितने तन्तु होते हैं? a) 10,000 – 20,000
b) 15,000 – 30,000
c) 20,000 – 50,000
d) 25,000 – 40,000
उत्तर: c) 20,000 – 50,000
कारा की मुख्य अक्ष की वृद्धि किससे होती है? a) पार्श्व शाखा
b) शिखाग्र कोशिका
c) पर्व कोशिका
d) अनुपर्णक
उत्तर: b) शिखाग्र कोशिका
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कारा के थैलस की लंबाई कितनी हो सकती है? a) 1 से 10 सेंटीमीटर
b) 5 से 20 सेंटीमीटर
c) 10 से 60 सेंटीमीटर
d) 20 से 100 सेंटीमीटर
उत्तर: c) 10 से 60 सेंटीमीटर
कारा में कोशिका भित्ति किस प्रकार की होती है? a) सरल
b) जटिल
c) स्तरीय
d) अनियमित
उत्तर: c) स्तरीय
कारा में उपास्थि की तरह की संरचना को क्या कहते हैं? a) अनुपर्णक
b) पर्व कोशिका
c) न्यूक्यूल
d) हेज़
उत्तर: d) हेज़
कारा में लैंगिक जनन किसके माध्यम से होता है? a) अनुपर्णक और पर्व कोशिका
b) ग्लोब्युल और न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष और शिखाग्र कोशिका
d) पार्श्व शाखा और थैलस
उत्तर: b) ग्लोब्युल और न्यूक्यूल
कारा की शाखाओं में किस प्रकार की वृद्धि होती है? a) अंतर्वर्धन
b) वाह्यवर्धन
c) अपवर्धन
d) पार्श्ववर्धन
उत्तर: a) अंतर्वर्धन
कारा में स्तंभ कोशिकाओं का कार्य क्या है? a) जल का संचार
b) भोजन का संश्लेषण
c) संरचना का समर्थन
d) जनन
उत्तर: c) संरचना का समर्थन
कारा की जड़ें किस प्रकार की होती हैं? a) मूल
b) मूलिका
c) मुलाभास
d) अनुपर्णक
उत्तर: b) मूलिका
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कारा का “हेज़न” मुख्यतः किससे संबंधित है? a) भोजन संश्लेषण
b) जनन
c) संरचना
d) जल संचरण
उत्तर: c) संरचना
कारा का लैंगिक जनन किस प्रकार का होता है? a) समांगमी
b) विषमांगमी
c) अनुजांगमी
d) सम-समांगमी
उत्तर: b) विषमांगमी
किसके माध्यम से कारा में अपवर्धन होता है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) उपस्थिक
उत्तर: a) अनुपर्णक
किस प्रकार की कोशिका कारा में पार्श्व शाखाओं का निर्माण करती है? a) शिखाग्र कोशिका
b) अंतर्वर्धित कोशिका
c) स्तंभ कोशिका
d) परिपक्व कोशिका
उत्तर: b) अंतर्वर्धित कोशिका
कारा की जीवाणुरोधी गुणधर्म किसे दर्शाते हैं? a) भोजन संश्लेषण
b) जल संचरण
c) रक्षा
d) प्रजनन
उत्तर: c) रक्षा
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कारा के किस भाग में न्यूक्यूल और ग्लोब्यूल पाए जाते हैं? a) मुख्य अक्ष
b) प्रपत्र
c) अनुपर्णक
d) शिखाग्र
उत्तर: b) प्रपत्र
कारा में कौन सी संरचना शुक्राणु को अंडाणु तक ले जाती है? a) न्यूक्यूल
b) ग्लोब्यूल
c) अनुपर्णक
d) परिपक्व कोशिका
उत्तर: b) ग्लोब्यूल
कारा में कौन सा प्रजनन विधि अधिक प्रचलित है? a) लैंगिक प्रजनन
b) अलैंगिक प्रजनन
c) बीजजनन
d) कोशिका विभाजन
उत्तर: a) लैंगिक प्रजनन
कारा के किस भाग में क्लोरोफिल अधिक पाया जाता है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) शिखाग्र
उत्तर: c) मुख्य अक्ष
कारा के जलीय पर्यावरण में कौन सा अंग पौधे को स्थिर रखने में मदद करता है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) रूटहेयर
d) ग्लोब्यूल
उत्तर: c) रूटहेयर
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कारा के प्रजनन अंगों में कौन सा अंग अंडाणु का निर्माण करता है? a) न्यूक्यूल
b) ग्लोब्यूल
c) अनुपर्णक
d) शिखाग्र
उत्तर: a) न्यूक्यूल
कारा में किस अंग का मुख्य कार्य प्रकाश संश्लेषण है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) रूटहेयर
उत्तर: c) मुख्य अक्ष
कारा का कौन सा अंग पौधे के समर्थन और संरचना में सहायता करता है? a) अनुपर्णक
b) मुख्य अक्ष
c) न्यूक्यूल
d) ग्लोब्यूल
उत्तर: b) मुख्य अक्ष
कारा में कौन सा अंग पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद करता है? a) अनुपर्णक
b) मुख्य अक्ष
c) न्यूक्यूल
d) रूटहेयर
उत्तर: d) रूटहेयर
कारा में “राइजॉयड” किसे कहा जाता है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) रूटहेयर
उत्तर: d) रूटहेयर
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कारा के कौन से भाग में कोशिका विभाजन होता है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) शिखाग्र
d) ग्लोब्यूल
उत्तर: c) शिखाग्र
कारा में कौन सा अंग सबसे अधिक तंतुमय होता है? a) अनुपर्णक
b) मुख्य अक्ष
c) न्यूक्यूल
d) ग्लोब्यूल
उत्तर: b) मुख्य अक्ष
कारा में कौन सा अंग पौधे को स्थिरता प्रदान करता है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) रूटहेयर
उत्तर: d) रूटहेयर
कारा के किस अंग का उपयोग प्रजनन के लिए किया जाता है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) ग्लोब्यूल
उत्तर: b) न्यूक्यूल
कारा में किस अंग का मुख्य कार्य श्वसन है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) ग्लोब्यूल
उत्तर: c) मुख्य अक्ष
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कारा का कौन सा अंग पानी के अंदर प्रकाश संश्लेषण करता है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) रूटहेयर
उत्तर: c) मुख्य अक्ष
कारा में किस अंग का मुख्य कार्य पानी का अवशोषण है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) रूटहेयर
उत्तर: d) रूटहेयर
कारा में किस अंग का उपयोग पानी के अंदर स्थिरता के लिए किया जाता है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) रूटहेयर
उत्तर: d) रूटहेयर
कारा के किस अंग का मुख्य कार्य पानी के अंदर श्वसन है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) ग्लोब्यूल
उत्तर: c) मुख्य अक्ष
कारा में किस अंग का उपयोग पोषक तत्वों के संग्रह के लिए किया जाता है? a) अनुपर्णक
b) न्यूक्यूल
c) मुख्य अक्ष
d) रूटहेयर
उत्तर: d) रूटहेयर
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