Introduction to taxonomy

Introduction to taxonomy

Taxonomy 

Gr. taxis = arrangements + nomas = Low

  • Taxonomy term – A.P. De. Candolle – Book – Theory élémentaire de la Botanique (वनस्पति शास्त्र के प्रारंभिक सिद्धांत )
  • Systematics – Carolus Linneaus – Father of plant taxonomy 
  • H.Santapau – Father of Indian Taxonomy 

Definition of Taxonomy 

Jeffrey -1968

Plant taxonomy otherwise known as systematic botany is concerned with the identification, classification and naming of plants.

G.H.M, Lowrence 1951

Taxonomy is a branch of botany which deals with identification, nomenclature and classification of plants.

Whereas in systematic botany plants are described and classified on the basis of their morphological characters.

Alpha taxonomy – 

  • इसे classical , orthodox या formal taxonomy भी कहा जाता है। 
  • इस शाखा में नई प्रजाति को पहचानना उसका वर्णन तथा उसका वर्गीकरण किया जाता है। 
  • इसमें पहले से वर्णित जाती का revised classification भी किया जा सकता है। 
  • यह जीव-विज्ञान की अन्य शाखाओं जैसे Biodiversity, ecology, phylogenetic तथा phytogeography आदि के लिए भी महत्वपूर्ण है। 
  • इसमें संगृहीत किये गए अज्ञात पादपों की पहचान हर्बेरियम की सहायता से की जाती है। 
  • अतः ऐसे वर्गीकरण जो पादपों के आकारिकीय गुणों पर आधारित है अल्फ़ा वर्गीकरण में सम्मिलित किये जाते है। 

Alpha taxonomy के अध्य्यन को निम्न चरणों में बांटा गया है –

(i) Exploration phase

(ii) Consolidation Phase

(iii) Documentation Phase

(i) Exploration Phase (अनुसन्धान /अन्वेषण )

  • इसमें नए पादप की खोज करके उसको संगृहीत कर उसकी पहचान कर उसे herberia में संरक्षित किया जाता है। 
  • इस अवस्था को भी निम्न भागों में बाँटा गया है। 
  1. Description of plant
  2. Identification of Plant
  3. Nomenclature of plant
  4. Classification 

a. Description of Plant 

  • इसमें पादप के आकारिकीय लक्षणों का वैज्ञानिक शब्दावली में विस्तार पूर्वक वर्णन किया जाता है। 
  • इसमें कभी कभी केवल निदानात्मक गुणों का ही वर्णन किया जाता है। 
  • इसमें पादप की प्रकृति ,तना, पत्तियां, जड़, पुष्प, परिदल, दल पुंकेसर, जायांग, बीज, फल, आदि से संबंधित वर्णन किया जाता है। 

b. Identification 

  • इसमें अज्ञात पादप specimen को Herbarium में उपलब्ध ज्ञात specimen द्वारा सही पहचान कर उसे उचित Rank में वर्गीकृत किया जाता है इसके लिए dichotomous key की आवश्यकता होती है। 

c. Nomenclature –

  • अंतराष्ट्रीय नियमानुसार किसी पादप के वैज्ञानिक नाम का निर्धारण करना तथा उपयुक्त नाम सुनिश्चित करना ही नामकरण कहलाता है। 
  • इसके लिए international code of Botanical Nomenclature ICBN संस्था द्वारा सुनिश्चित नियमों के आधार पर ही नामकरण किया जाता है। 
  • पादप का नाम Greek या Latin भाषा में लिखा जाता है। 

d. Classification

  • Alpha taxonomy में वर्णित पादपों को मुख्य रूप से आकारीकिय गुणों के आधार पर ही वर्गीकृत किया जाता है। 
  • इसमें artificial classification के आधार पर ही पादपों का वर्गीकरण किया जाता है। 

(ii )  Consolidation phase

  • यह पादप वर्गीकरण की दूसरी प्रावस्था थी इसमें पादपों के morphological लक्षणों के आधार पर पादप ग्रन्थ या औषधीय ग्रन्थ को पुस्तक के रूप में लिखा गया। 
  • इसमें पादपों पर monograph (वृहद लेख ) लिखे गए। 
  • इसके आधार पर वंश तथा अन्य taxonomic rank की सीमाओं का आंकलन सम्भव हो पाता है 

(iii) Documentation 

  • पादप की पहचान हो जाने के बाद इनके specimen को Herbarium में उचित स्थान पर व्यवस्थित कर दिया जाता है। 
  • इसके लिए पादप को सुखाकर इसे एक शीट पर चिपकाया जाता है तथा उस पर उस पादप की जाती, उपजाति, किस्म कहाँ से प्राप्त किया गया उस जगह का नाम एवं संग्रहण की तारीख आदि लिखी जाती है। 
  • इन specimen को type specimen (प्रारूपिक प्रादर्श ) कहा जाता है। 
  • यह specimen taxonomy के अध्ययन व शोध में जानकारी प्राप्त करने के काम आते है। 
  • इन रिकॉर्डो से एक ही जाती के विभिन्न प्रदर्शो में भिन्नता देखि जाती है।  
  • यदि type specimen उपलब्ध नहीं होता है तो उसका चित्र भी preserved किया जा सकता है। 

Omega (Ω) Taxonomy

  • जब संपूर्ण स्रोतों  से प्राप्त लक्षणों का उपयोग कर किसी पादप का वर्गीकरण किया जाता है इसे ओमेगा या होलोवर्गिकी कहा जाता है। 
  • यह पद्धति पादपों के जातिवृत्तीय सम्बन्धो पर आधारित होती है अर्थात इसमें जातिवृत्तीय सम्बन्धो का उपयोग किया जाता है 
  • इस पद्धति में पादपों के अनुवांशिक लक्षणों के सम्बन्धो एवं जननांगों पर आधारित लक्षणों को ध्यान में रख कर समूह व उप समूह निर्मित किये जाते है अतः इसे phylogenetic (जातिवृत्तीय ) पद्धति कहते है। 
  • इस वर्गीकरण के द्वारा किसी taxon के पूर्वजों अथवा उनके व्यत्पन्नो के निर्धारण में सहायता मिलती है। 
  • इसमें  numerical taxonomy, taximetrics, chemotaxonomy, molecular biology, genetic आदि की मत्वपूर्ण भूमिका होती है। 
  • इस वर्गीकरण की यह विशेषता होती है की इसमें अब तक उपलब्ध सभी सूचनाओं एवं आधुनिक तकनीक द्वारा प्राप्त सभी जानकारियों जिसमे डीएनए जीन भी सम्मिलित किये जाते के द्वारा जीवों के मध्य परस्पर समानताओं पर विचार करके वर्गीकरण द्वारा उस पादप का स्थान सुनिश्चित किया जाता है। 

Beta taxonomy

  • इसमें species को  hierarchical categories के natural system के आधार पर arrange किया जाता है .
  • इसमें आसानी से observ होने वाले तथा विभिन्न प्रकार के साझा लक्षणों का मूल्यांकन किया जाता है 
  • अतः यह वर्गीकरण की प्राकृतिक प्रणाली से संबंधित होती है 
  • इसमें प्रत्येक टैक्सोन के लिए unique fea­tures होते है अतः  यह पादप के evolutionary tendancy (प्रवृत्ति) को दर्शाता है 

Branches of Taxonomy

सामान्यतःवर्गीकरण विज्ञान का प्रारम्भ थिओफ्रास्ट्स (370 – 285 BC ) माना गया है किन्तु 19 वीं शताब्दी तक जो भी वर्गीकरण किया गया वह आकारिकीय लक्षणों पर आधारित था इसके बाद 20 वीं शताब्दी में अनेको वैज्ञानिको ने अनुसंधान के कार्य किये जिसके आधार पर वर्गीकरण को दो  भागों में बाँटा गया। 

  1. Classical Taxonomy
  2. Modern Taxonomy

A. Classical Taxonomy (चिरसम्मत वर्गिकी )

  • यह प्राचीन वर्गीकरण प्रणाली है जिसे औपचारिक रूढ़िवादी अथवा अल्फ़ा टेक्सोनोमी कहा जाता है 
  • इसमें 19 वीं  शताब्दी से पहले के प्रचलित वर्गीकरण को सम्मलित किया गया है। 

B. Modern Taxonomy (आधुनिक वर्गिकी )

  • इसका प्रतिपादन सबसे पहले Julian Huxley ने 1940 में किया। 
  • इसमें phylogenetic relationship के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है 
  • इसे निम्न प्रावस्थाओं में बाँटा  गया है। 

1 . Synthetic or Encyclopaedic phase

  • इसमें classical taxonomy से पर्पट सूचनाओं को क्रमबद्ध किया जाता है। 
  • इसके द्वारा पादपों की जातीयता उपजातीयता किस्में (species, subspecies, varieties) तथा पारिस्थितिकीय प्ररूप व अनुकूलक (ecotype and ecophenes) के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। 

2 . Electron Microscopy

  • इसके द्वारा कोशिकाओं से संबंधित सभी जानकारी प्राप्त कर उसका विस्तृत अध्ययन किया जाता है 
  • इसके लिए Transmission electron microscope, scanning electron microscope का भी उपयोग किया जाता है। 
  • इनसे प्राप्त जानकारी का उपयोग कर पादप वर्गको की जाती तथा किस्मो का सही निर्धारण किया जाता है। 

3 . New taxonomic approaches

  • इसके अंतर्गत पौधों का जाति वृत्तीय वर्गीकरण तैयार करने के लिए विभिन्न विधाओं का उपयोग किया जाता है.
  •  इसमें विभिन्न दृश्य आंकड़ों जैसे पादप की जड़ तना पत्ती फूल  तथा फल आदि लक्षणों को देखा जाता है इसके साथ ही पादप किस पारिस्थितिकी है वातावरण में वृद्धि कर रहा है इसकी भी जानकारी रखी जाती है
  •  इन आंकड़ों की जानकारी फील्ड से संग्रहित कर वर्गको के मध्य संबंध स्थापित किए जाते हैं
  •  कोशिकाओं से संबंधित आंकड़ों को स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री तथा सूक्ष्मदर्शी के सहायता से संग्रहित किया जाता है
  •  इस आधुनिक वर्गीकरण में जाति वृत्तीय पद्धति को विकसित करने के लिए दृश्य आंकड़ों के साथ-साथ वनस्पति विज्ञान की अन्य शाखाओं का भी उपयोग किया जाता है जैसे एनाटॉमी सीरम निदान  पुष्पीय एनाटॉमी कोशिका विज्ञान जैव रासायनिक की  जेव सांख्यिकी पादप भूगोल पूरा वनस्पति विज्ञान आदि का उपयोग कर वर्ग की समस्याओं का निदान किया जाता है

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